जलियांवाला बाग: भारतीय इतिहास में एक क्रूर अध्याय

हर साल जब 13 अप्रैल की तारीख आती है तो अंग्रेज़ो द्वारा भारतीयों पर किए गए जुल्म की कहानी एक बार फिर से उजागर हो जाती हैं। ये घटना आज भी लोगों को उस वक़्त भारतीयों पर हुए उस दर्द का एहसास कराती है जो की असहनीय हैं। जी हाँ, हम बात कर रहे है जलियांवाला बाग हत्याकांड की। जलियांवाला बाग हत्याकांड जिसे आज पुरे 105 साल बीत चुके है लेकिन इस कांड के दिए गए जख्म आज भी ताज़ा हैं। आपको बता दें कि भारत की आज़ादी की लड़ाई की सबसे दुखद और क्रूर घटनाओं में से एक है जलियांवाला बाग हत्याकांड। उस नरसंहार का दृश्य कैसा रहा होगा, इसकी कप्लना भी नहीं की जा सकती और ना ही इसे कुछ शब्दो में समेटा जा सकता हैं लेकिन आइए जानते है क्या है जलियांवाला बाग हत्याकांड ?

क्या है जलियांवाला बाग हत्याकांड ?

यह कहानी 1919 के भारतीय स्वंतंत्रा आंदोलन के दौरान की हैं। इस हत्याकांड की शुरुआत 1919 में पास हुए रॉयल एक्ट से शुरू हुई थी। रॉयल एक्ट में बिना मुकदमे के राजद्रोह के संदेह वाले किसी भी व्यक्ति को कैद करने की अनुमति दे दी गई थी। इस दौरान पुरे भारत में इसका विरोध हुआ था। अमृतसर के जलियांवाला बाग में प्रदर्शनकारियों का एक समहू इकट्ठा हुआ था जिसमे पुरष, महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। ये लोग यहाँ पर गिरफ्तार किए गए दो प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं के रिहाई की मांग के लिए शांति से इसका विरोध कर रहे थे।

400 से 1000 लोग मारे गए


इस खबर की सुचना मिलते ही जनरल डायर ने अपने ब्रिटिश सैनिको को निहत्थी भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। जिसके बाद ब्रिटिश सैनिको ने एक मात्र बाग से निकलने वाले मार्ग को भी बंद कर दिया और अंधाधुन गोलियां बरसाना शुरू कर दी। इस गोलीबाजी में 400 से 1000 लोग मारे गए और 1200 लोग घायल होंगे। बता दें कि इस जलियांवाला बाग हत्याकांड ने सभी लोगों के मन के अंदर अंग्रेज़ो के प्रति एक आग उत्पन कर दी जिसके बाद भारत में इसका काफी विरोध हुआ। महात्मा गाँधी ने भी इसके बाद असहयोग आंदोलन आंदोलन ki शुरुआत की। इस घटना को याद करके आज भी लोगों का दिल अंग्रेज़ो के प्रति गुस्से की एक आग उत्पन कर देता हैं। ऐसे में आज हम जलियांवाला बाग नरसंहार के सभी वीर शहीदों को दिल से श्रद्धांजलि देते हैं।

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